About Konark Sun Temple In Hindi

About Konark Sun Temple In Hindi : सूर्य देव को समर्पित कोणार्क सूर्य मंदिर


About Konark Sun Temple In Hindi: कलिंग शैली में बना है मंदिर, रथ में हैं 7 घोड़े और 12 जोड़ी पहिए।

अनगिनत वर्षों से चले आ रहे सनातन धर्म के वेदों व ग्रंथों में वर्णितआदि पंच देवों में भगवान सूर्य नारायण भी आते हैं। वहीं आदि पंच देवों में से कलयुग में सूर्य ही प्रत्यक्ष देव जिनके हम साक्षात दर्शन कर सकते है। धर्म वेदों में भी सूर्य की पूजा के बारे में बताया गया है। वहीं हर प्राचीन ग्रंथों में सूर्य की महत्वता व लाभों का वर्णन मिलता है।

ज्योतिष शास्त्र में भी सूर्य को ग्रहों का राजा बताया गया है। ऐसा भी कहा गया है कि रविवार को सूर्य की पूजा से सभी इच्छाए पूर्ण होती हैं। इनकी पूजा अर्चना से स्वास्थ्य, ज्ञान, सुख, पद, सफलता, प्रसिद्धि व बुद्धि आदि की प्राप्ति होना निश्चित है।

यही कारण है कि भारतीय समुदाय के लोगों के लिए कोणार्क का सूर्य मंदिर बहुत विशेष महत्व रखता है। हर साल लाखों लोग इस भव्य मंदिर को देखने आते हैं और इसके रहस्यों को टटोलते हैं।

जानिए कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में संपूर्ण जानकारी।

मंदिर का इतिहास (Konark Temple History In Hindi)

सूर्य देव को समर्पित, इस मंदिर का नाम दो शब्दों कोण और अर्क से जुड़कर बना है कोण यानि कोना और अर्क का अर्थ सूर्य है। यानी सूर्य देव का कोना। इसे कोणार्क के सूर्य मंदिर के नाम पहचाना जाता है। मंदिर का निर्माण 13वीं शताब्दी 1236 से 1264 ई. के मध्यकाल में गंगवंश के प्रथम नरेश नरसिंह देव ने करवाया था। इस मंदिर के निर्माण में मुख्यत बलुआ, ग्रेनाइट पत्थरों व कीमती धातुओं का इस्तेमाल किया गया है।

मंदिर का निर्माण 1200 मजदूरों ने दिन-रात मेहनत कर लगभग 12 वर्षों में बनाया था। यह मंदिर 229 फीट ऊंचा है इसमें एक ही पत्थर से निर्मित भगवान सूर्य की तीन मूर्तियां स्थापित की गई है। जो दर्शकों को बहुत ही आकर्षित करती है। मंदिर में सूर्य के उगने, ढलने व अस्त होने सुबह की स्फूर्ति, सायंकाल की थकान और अस्त होने जैसे सभी भावों को समाहित करके सभी चरणों को दर्शाया गया है। यह मंदिर ओडिशा राज्‍य में पुरी शहर से लगभग 37 किलोमीटर दूर चंद्रभागा नदी के तट पर स्थित है।

अद्भुत शिल्पकला का नमूना है यह मंदिर (Konark Temple Architecture)

इस मंदिर का स्वरूप व बनावट अद्भुत शिल्पकला का नमूना है। एक बहुत बड़े और भव्य रथ के समान है जिसमें 12 जोड़ी पहिया हैं और रथ को 7 बलशाली घोड़े खीच रहे है। देखने पर ऐसा लगता है कि मानों इस रथ पर स्वयं सूर्यदेव बैठे है। मंदिर के 12 चक्र साल के बारह महीनों को परिभाषित करते हैं और प्रत्येक चक्र, आठ अरों से मिलकर बना है, जो हर एक दिन के आठ पहरों को प्रदर्शित करता हैं। वहीं अब सात घोड़ें हफ्ते के सात दिनों को दर्शाता है।

इस मंदिर की सबसे रोचक बात यह है कि मंदिर के लगे चक्रों पर पड़ने वाली छाया से हम समय का सही और सटीक अनुमान लगा सकते है। यह प्राकृतिक धुप घड़ी का कार्य करते हैं। वहीं मंदिर के उपरी छोर से भगवान सूर्य का उदय व अस्त देख जा सकता है जो की मनभावन है।

ऐसे लगता है मानों सूरज की लालिमा ने पूरे मंदिर में लाल रंग बिखेर दिया हो और मंदिर के प्रांगण को लाल सोने से मढ़ा हों। मंदिर का मुख पूर्व की ओर है और इसके तीन महत्वपूर्ण हिस्से – देउल गर्भगृह, नाटमंडप और जगमोहन (मंडप) एक ही दिशा में हैं। सबसे पहले नाटमंडप में वह द्वार है जहां से प्रवेश किया जा सकता है। इसके बाद जगमोहन और गर्भगृह एक ही जगह पर है।

कलिंग शैली में बना है मंदिर, रथ में हैं 7 घोड़े और 12 जोड़ी पहिए

इस मंदिर को पूर्व दिशा की ओर ऐसे बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार पर पड़ती है. यह मंदिर कलिंग शैली में निर्मित है और इसकी संरचना रथ के आकार की है. रथ में कुल 12 जोड़ी पहिए हैं. एक पहिए का व्‍यास करीब 3 मीटर है. इन पहियों को धूप धड़ी भी कहते हैं, क्योंकि ये वक्त बताने का काम करते हैं. इस रथ में सात घोड़े हैं, जिनको सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक माना जाता है.

कोणार्क के सूर्य मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण के पुत्र सांबा को अपने पिता के श्राप के कारण कुष्ठ रोग हो गया था। साम्बा ने मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में 12 वर्षों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया था जिससे उनकी बीमारी ठीक हो गई। इसका आभार प्रकट करने के लिए उन्होंने सूर्य के सम्मान में एक मंदिर बनाने का फैसला किया।

अगले दिन नदी में नहाते समय उन्हें भगवान की एक प्रतिमा मिली, जो विश्वकर्मा द्वारा सूर्य के शरीर से निकाली गई थी। सांबा ने यह चित्र मित्रवन में उनके द्वारा बनाए गए मंदिर में स्थापित किया, जहाँ उन्होंने भगवान को प्रवचन दिया। तब से यह स्थान पवित्र माना जाता है और कोणार्क के सूर्य मंदिर के रूप में जाना जाता है।

कोणार्क सूर्य मंदिर के आसपास घूमने की जगह

कोणार्क सूर्य मंदिर के अलावा कोणार्क शहर के आसपास सुंदर समुद्र तट, प्रसिद्ध मंदिर और प्राचीन बौद्ध स्थल हैं। जो कोणार्क मंदिर जाने वाले पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र हैं। आप यहां चंद्रभागा समुद्र तट, रामचंडी मंदिर, बेलेश्वर, पिपली, ककटपुर, चौरासी, बालीघई सहित कई पर्यटन स्थल घूम सकते हैं। ये सभी स्थल कोणार्क के सूर्य मंदिर से चार से पांच किलोमीटर की दूरी पर ही स्थित हैं जो देखने लायक हैं।

कोणार्क में कहां रूकें

कोणार्क में ठहरने के लिए सीमित विकल्प हैं। यात्री शहर में अपने बजट के अनुसार होटलों में ठहर सकते हैं। यहां ठहरने के लिए ट्रैवलर्स लॉज, कोणार्क लॉज, सनराइज, सन टेम्पल होटल, लोटस रिजॉर्ट और रॉयल लॉज जैसे निजी प्रतिष्ठान उपलब्ध हैं। जहां आप ठहर सकते हैं। इसके अलावा ओटीडीसी द्वारा संचालित पंथनिवास यात्रि निवास में सरकारी आवास भी उपलब्ध है, जहां रूकने की सुविधा है।

कोणार्क का सूर्य मंदिर के बारे में रोचक तथ्य

  • मंदिर के शीर्ष पर एक भारी चुंबक रखा गया था और मंदिर के हर दो पत्थर लोहे की प्लेटों से सुसज्जित हैं। कहा जाता है कि मैग्नेट के कारण मूर्ति हवा में तैरती हुई दिखायी देती है।
  • सूर्य देव को ऊर्जा और जीवन का प्रतीक माना जाता है। कोणार्क का सूर्य मंदिर रोगों के उपचार और इच्छाओं को पूरा करने के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।
  • कोणार्क का सूर्य मंदिर ओडिशा में स्थित पांच महान धार्मिक स्थलों में से एक माना जाता है जबकि अन्य चार स्थल पुरी, भुवनेश्वर, महाविनायक और जाजपुर हैं।
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर की विशेषता यह है कि इस मंदिर के आधार पर 12 जोड़ी पहिए स्थित हैं। वास्तव में ये पहिये इसलिए अनोखे हैं क्योंकि ये समय भी बताते हैं। इन पहियों की छाया देखकर दिन के सटीक समय का अंदाजा लगाया जा सकता है।
  • इस मंदिर में प्रत्येक दो पत्थरों के बीच में एक लोहे की चादर लगी हुई है। मंदिर की ऊपरी मंजिलों का निर्माण लोहे की बीमों से हुआ है। मुख्य मंदिर की चोटी के निर्माण में 52 टन चुंबकीय लोहे का उपयोग हुआ है। माना जाता है कि मंदिर का पूरा ढाँचा इसी चुंबक की वजह से समुद्र की गतिविधियों को सहन कर पाता है।
  • माना जाता है कि कोणार्क मंदिर में सूर्य की पहली किरण सीधे मुख्य प्रवेश द्वार पर पड़ती है। सूर्य की किरणें मंदिर से पार होकर मूर्ति के केंद्र में हीरे से प्रतिबिंबित होकर चमकदार दिखाई देती हैं।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर के प्रवेश द्वार के दोनों और दो विशाल शेर स्थापित किए गए हैं। इन शेरों द्वारा हाथी को कुचलता हुआ प्रदर्शित किया गया है प्रत्येक हाथी के नीचे मानव शरीर है। जो मनुष्यों के लिए संदेश देता हुए मनमोहक चित्र है।
  • कोणार्क के सूर्य मंदिर परिसर में नाटा मंदिर यानि नृत्य हाल भी देखने लायक है।
  • मंदिर की संरचना और इसके पत्थरों से बनी मूर्तियां कामोत्तेजक मुद्रा में हैं जो इस मंदिर की अन्य विशेषता को प्रदर्शित करता है।

निष्कर्ष

सूर्य देव से जुड़ा कोणार्क सूर्य मंदिर।
लेख के जरिये कोणार्क सूर्य मंदिर के बारे में सबंधीत सम्पूर्ण जानकारी दी है। आपको अच्छी तरह से समझ आया होगा।
ऐसे ही और लेख जान ने के लिए हमारी वेबसाइट को सेव करें और लाइक करें।धन्यावद।

FAQ : About Konark Sun Temple In Hindi

Q.कोणार्क सूर्य मंदिर की विशेषता क्या है?

A.कोणार्क मंदिर को लोग इसके गहरे रंग के कारण ‘काला पगोडा’ भी कहते हैं. इस मंदिर की विशेषता है कि यहां बिना किसी घड़ी के भी दिन के समय को इंगित किया जा सकता है. कलिंग वास्तूशैली में बना कोणार्क सूर्य मंदिर को रथ आकार में बनाया गया है जिसमें 12 जोड़ी पहिए हैं, जो साल के 12 महीनों का प्रतीक हैं.

Q.कोणार्क मंदिर की कहानी क्या है?

A.साम्ब ने चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में, बारह वर्षों तक तपस्या की। जिसके चलते सूर्य देव प्रसन्न हो गए। सूर्यदेव, जो सभी रोगों के नाशक थे, ने इसके रोग का भी निवारण कर दिया। तभी साम्ब ने सूर्य भगवान का एक मंदिर बनवाने का निर्णय किया।

Q.कोणार्क मंदिर में कितने चक्र हैं?

A.यहाँ का सूर्य मन्दिर बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के रथ के रूप में की गई है। रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और इसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं।

Q.कोणार्क मंदिर का दूसरा नाम क्या है?

A.प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर ओडिशा के कोणार्क शहर में स्थित है। यह भारत के बहुत कम और प्रसिद्ध सूर्य मंदिरों में से एक है। काले ग्रेनाइट से निर्मित होने के कारण इसे ‘काला पैगोडा’ भी कहा जाता है।

Q.कोणार्क की मूर्तियों की क्या विशेषताएं हैं?

A.कोणार्क सूर्य मंदिर की सबसे खास विशेषता इसके प्रवेश द्वार पर बनी विशाल रथ की मूर्ति है, जिसे 7 घोड़े खींचते हैं । घोड़ों को इस तरह से तराशा गया है कि वे दौड़ते हुए प्रतीत होते हैं, उनके अयाल और पूंछ उनके पीछे बह रही हैं। ऐसा माना जाता है कि यह सूर्य देवता सूर्य के रथ का प्रतिनिधित्व करता है।

जानिए इसके बारे में


Written by

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *